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Ambe ji ki Aarti Lyrics : माँ दुर्गा के पावन नवरात्रि के छठे दिन माँ कात्यायिनी की पूजा की जाती है। माँ कात्यायिनी दुर्गा के छठे स्वरूप हैं। इनका स्वरूप अत्यंत सुन्दर और आकर्षक है। इनके चार हाथ हैं। इनके दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। ये सिंह पर सवार हैं। इनका मुखमंडल मुस्कुराता हुआ है। माँ कात्यायिनी को ‘विद्या की देवी’ भी कहा जाता है। इनकी पूजा करने से विद्या, बुद्धि और ज्ञान की प्राप्ति होती है। इनकी पूजा करने से विवाह में आ रही बाधाएं दूर होती हैं। इनकी पूजा से शत्रुओं का भय भी समाप्त हो जाता है।
मैया अम्बे जी की आरती हमारे सम्पूर्ण भारतीय संस्कृति में माँ दुर्गा की महत्वपूर्ण पूजा और आराधना का हिस्सा है। यह आरती माँ दुर्गा, जिन्हें अम्बे और गौरी के नामों से भी जाना जाता है, की महिमा और महत्व को प्रकट करती है।
आरती के शब्द “जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी” से आरंभ होते हैं, जिससे माँ दुर्गा की महिमा का स्तुति किया जाता है। आरती में ईश्वर की महिमा का गुणगान किया जाता है और उनके आदर्शों का पालन करने की प्रार्थना की जाती है।
मांग सिंदूर विराजत, टिको मृगमड़ को। उज्जवल सेन आवत, नरव खचर लगत सो। इस पंक्ति में माँ दुर्गा के रूप का वर्णन किया गया है, जिनके वाहन वृषभ होते हैं और जिनके श्रद्धालुओं के लिए वे सदैव प्रसन्न रहती हैं।
यह आरती माँ दुर्गा की पूजा में गाई जाती है और उनकी कृपा की प्राप्ति के लिए प्रार्थना किया जाता है। इसके माध्यम से श्रद्धालुओं का आध्यात्मिक संबंध माँ दुर्गा से मजबूत होता है और वे उनके आदर्शों का पालन करते हैं। अम्बे जी की आरती हमारे धार्मिक और सामाजिक संगठनों में भी नियमित रूप से आयोजित होती है और लोगों को एक साथ आने का अवसर प्रदान करती है।
इस आरती के पठन से माँ दुर्गा के प्रति हमारी भक्ति और समर्पण का अभिवादन होता है, और हमें उनकी कृपा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह आरती हमारे जीवन में शांति, समृद्धि, और सुख-शांति की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करती है और हमें सही मार्ग पर चलने के लिए मार्गदर्शन करती है।
इसलिए, अम्बे जी की आरती हमारे धार्मिक और आध्यात्मिक जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है और हमें एक उच्च आदर्श की ओर प्रेरित करती है, जिसमें माँ दुर्गा का आशीर्वाद हमें सफलता और सुख की प्राप्ति में मदद करता है।
माँ कात्यायिनी की पूजा विधि इस प्रकार है:
- सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ वस्त्र धारण करें।
- पूजन स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें।
- मां कात्यायिनी की प्रतिमा या तस्वीर को पूजन स्थल पर स्थापित करें।
- मां कात्यायिनी को पुष्प, अक्षत, चंदन, धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करें।
- मां कात्यायिनी के मंत्र का जाप करें।
- मां कात्यायिनी की आरती करें।
माँ कात्यायिनी के मंत्र:
- “या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।”
- “कात्यायनी महामाये, महायोगिन्यधीश्वरी। नन्दगोपसुतं देवी, पति मे कुरु ते नमः।।”
माँ कात्यायिनी का प्रसाद:
- मां कात्यायिनी को शहद का भोग लगाएं।
- मां कात्यायिनी की आरती के बाद प्रसाद ग्रहण करें।
माँ अम्बे जी की आरती – Ambe ji ki Aarti Lyrics
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी।
तुमको निशिदिन ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवरी॥ जय अम्बे गौरी…….
माँग सिन्दूर विराजत, टीको मृगमद को।
उज्जवल से दोउ नैना, चन्द्रवदन नीको॥ जय अम्बे गौरी……..
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला, कण्ठन पर साजै॥ जय अम्बे गौरी…….
केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्परधारी।
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुखहारी॥ जय अम्बे गौरी……..
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।
कोटिक चन्द्र दिवाकर, सम राजत ज्योति॥ जय अम्बे गौरी…….
शुम्भ-निशुम्भ बिदारे, महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना, निशिदिन मदमाती॥ जय अम्बे गौरी……..
चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे।
मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥ जय अम्बे गौरी…….
ब्रहमाणी रुद्राणी तुम कमला रानी।
आगम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी॥ जय अम्बे गौरी……..
चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरूँ।
बाजत ताल मृदंगा, अरु बाजत डमरु॥ जय अम्बे गौरी…….
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता।
भक्तन की दु:ख हरता, सुख सम्पत्ति करता॥ जय अम्बे गौरी……..
भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी।
मनवान्छित फल पावत, सेवत नर-नारी॥ जय अम्बे गौरी…….
कन्चन थाल विराजत, अगर कपूर बाती।
श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रतन ज्योति॥ जय अम्बे गौरी……..
श्री अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावै।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पत्ति पावै॥ जय अम्बे गौरी…….
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